अकबर पर खोजी दृष्टि
शाज़ी ज़माँ के उपन्यास को
पढ़ने के पहले मैं अकबर के बारे में उतना ही जानता था जितना जितना जूनियर हाईस्कून
की इतिहास की किताबों में लिखे पाठ में पढ़ा था। इसके बाद अकबर के बारे में कुछ
अधिक नहीं पढ़ सका। शाज़ी ज़माँ की यह किताब जिसे वह उपन्यास कहते हैं लेकिन मैं
इतिहास या उसके बहुत निकट मानता हूं,अकबर के बारे
में मुझे काफी जानकारी देती है, बहुत कुछ नई जानकारी। शाज़ी चूंकि पत्रकार
रहे हैं,इसलिए इस उपन्यास में भी उन्होंने अपनी पत्रकारिता
की खेाजी प्रवृत्ति कायम रखा और मेरा
मानना है कि इसी से यह उपन्यास इतिहास के बहुत करीब पहुंच गया। उपन्यास में
चूंकि कल्पना करने की छूट होती है,इसलिए उसे सत्य नहीं
माना जाता। शाज़ी ने इसमें कल्पना सिर्फ अकबर के समय और उनसे जुड़ी घटनाओं को नए
सिलसिले से रखने में किया और उसी के सहारे पूरी किस्सागोई की। वह इसे इतिहास
मानते भी नहीं लेकिन समकालीन साहित्य से जो प्रमाण उन्होंने इसमें दिए हैं, वह इतिहास ही तो है। उन्होंने इसे लिखने के पहले जितना शोध किया, उतना कोई शोधार्थी भी शायद ही करता हो।
एक कार्यक्रम में कभी शायर जावेद अख्तर ने कह दिया था कि
अकबर उर्दू नहीं बल्कि कुछ फारसी, अवधी,देशी भाषांए और
पंजाबी बोलता था तो एक महिला ने इस पर आपत्ति की। जावेद अख्तर ने एक दर्जी की
किताब के उदाहरण से बताया कि जब अकबर आम लोगों से मिलते तो उन्हीं की भाषा में
बात करते। उस दर्जी ने(जावेद अख्तर ने उसकी किताब का नाम नहीं बताया) ने पहली बार
अकबर को एक दूकानदार से बात करते देखा था। अकबर ने थोड़े दिनों लाहौर में भी
राजधानी बनाया था। वह समाज के हर वर्गसे मिलते थे और लोगों की तकलीफें सुना करते
थे, जाहिर है उनसे बात करते समय उनकी ही भाषा में बात करते
होंगे। शाज़ी ज़माँ ने भी लिखा है कि अकबर हर दीन के लोगोंसे मिलते,उनकी बात सुनते,हर दीन की अच्छी बातों को जानने की
कोशिश करते क्यों कि वह ऐसा दीन चाहते थे जिसमें हर धर्म की अच्छी बातें
हों।दीने इलाही इसी का परिणाम है। शाज़ी यह भी बताते हैं कि अकबर अधिक पढे लिखे
नहीं थे और संभवत: डिस्लेक्सिया के शिकार थे, लेकिन वह रोज
किसी न किसी किताब से खासतौर से अपने पूर्वजों के बारे में लिखी गई किताबों को
सुना करते थे। इसके लिए खास लोग नौकरी पर रखे गए थे। यह उनकी ज्ञान पिपासा का
प्रमाण है और इससे वह अपनी समझ को बढ़ाया करते थे।
अकबर के बारे में इसमें लिखा गया है कि वह हवन करते थे और
सूर्य की पूजा करते थे। सूर्य की पूजा करते एक चित्र भी किताब के अंत में है। वह
ईसाई पादरियों से भी उनके धर्म के बारे में जानना चाहते थे और उनकी कुछ बातेां को
पसंद भी करते थे। उन्होंने मांसाहार भी छोड़ दिया था जो उनके मन में दूसरे धर्म
के सम्मान और जीवों के प्रति दया को दर्शाते हैं। उनकी दूसरे धर्म के प्रति बढ़ती
रुझान और उन्हें महत्व देने से कुछ
मौलाना उनसे नाराज भी हो गए थे और मुल्ला
अब्दुल कादिर बदायूंनी ने गुप्त रूप से उनकी इस सब बातों के बारे में लिखा। उनकी
किताब के अंश भी शाज़ी ने उद्धृत किए हैं। ईसाई पादरियों ने अकबर की इसी रुझान को
देखते हुए उन्हें अंतिम समय तक ईसाई बनाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। अकबर
के देहांत के समय उनका साम्राज्य हिंदूकुश से गोदावरी और बंगाल तक फैला था।लेकिन
समुद्र पर पुर्तगालियों का राज था और वे
अकबर के लोगों से भी कर वसूल लेते थे और जहाजों को रोक लेते थे। यह बात अकबर को
खलती थी, लेकिन मजबूर थे।
अकबर के दरबार के रत्नों के बारे में भी इसमें काफी
जानकारी है। अबुल फजल के अकबरनामा को तो इसका आधार ही बनाया गया है, इसलिए
उनकी चर्चा काफी है। इसी तरह बीरबल, तानसेन और फैजी आदि के
बारे में भी काफी कुछ बताया गया है। कहीं कहीं तो ये लोग ही उपन्यास के मुख्य
पात्र बन गए हैं।अकबर इन्हें कितना चाहते थे, यह इससे पता
चलता है कि दरबार के कई लोग इनके खिलाफ भड़काते भी रहते थे लेकिन अकबर ऐसी बातों
को महत्व नहीं देते। कुंभनदास और बीरबल के बारे में सुनी और पढ़ी गई कुछ घटनाएं
भी इसमें दी गई हैं।
उपन्यास में उस समय के वस्त्रों,उनके
रंग और सजावट,पहनने के तरीके आदि के साथ अकबर के डीलडौल के
बारे में भी बताया गया है।वह सिर के बाल मुंड़ा देते थे, दाढ़ी
नहीं रखते थे लेकिन मूंछें थीं, उनकी आवाज बुलंद थीं। वह
कैसा पायजामा और जामा पहनते थे। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के लिए जामा
बांधने का तरीका तय कर दिया था और हुमायूं के पायाजामें में फंस कर गिरने और उसी
के कारण मौत होने के बाद पायजामे की लंबाई कम कर दी गई थी।अकबर को शिकार का बहुत
शौक था और महीनों तक वह शिकार के लिए घेरा डाले रहते थे।उपन्यास की शुरुआत ही
शिकार के लिए डाले गए कमरगह (घेरा) से होती है और इसी के सहारे कहानी काफी आधा
रास्ता तय करती है। एक बात इससे यह भी
पता चलती थी कि उस समय भी आगरा दिल्ली का पानी अच्छा नहीं था। अकबर को कई बार
पेचिश पड़ी और उनका देहांतभी इसी कारण से हुआ। आखिरी पेचिश किसी भी दवा से ठीक
नहीं हुई।
उपन्यास में अकबर द्वारा लड़ी गई लड़ाइयों,राजनीतिक
प्रतिद्वंद्विता, उनके साहस की घटनाएं आदि विस्तार से लिखी
गई हैं। यहां भी अकबर का एक अलग रूप देखने को मिलता है। उनकी अन्य शासकों से
टकराव,युद्ध और उसके
नतीजों के साथ उनके पिता हुमायूं के साथ जुड़ी घटनाएं भी हैं। उपन्यास में
कहीं कहीं वर्णन में अति विस्तार दिखता है जो इसे थोड़ा बोझिल भी बनाता है। ऐसा
वहां है जहां कि किसी किताब के अंश या किसी शासक के लिखे पत्र या निर्देश को
उद्धृत किया गया है। ऐसे वर्णन में कथा के प्रवाह में बाधक बनते लगते हैं।
अकबर को जानने समझने के लिए इससे बेहतर किताब और कोई नहीं
हो सकती। एक ही साल के अंदर इसका दूसरा संस्करण आना भी इसकी तस्दीक करता है। एक
बात समझ में नहीं आई कवर पेज पर अकबर या उनसे जुड़ा कोई चित्र देने की जगह बारह
राशियों का चित्र देने के पीछे क्या सोच हो सकती है। अकबर ज्योतिष में यकीन रखते
थे और समय-समय पर शगुन और मुहूर्त भी दिखाते थे। कुंडली दिखाने की चर्चा इसमें कई
जगह आई है। इससे यह भी प्रतीत होता है उनके काल में भी ज्योतिष का प्रचार प्रसार
व्यापक था।