जनवार्ता मेंं रिपोर्टिंंग में मुझे कई तरह के अनुभव हुुए और काम करने की काफी छूट थी। कभी-कभी अकेले पूरा काम देखना पड़ता। हरिवंश जी मस्तमौला आदमी थे। वह जब गांव जाते चार दिन की छुट्टी लेकर तो एक महीने के पहले नहीं अाते। ऐसे में मुझे अकेले पूरी रिपोर्टिग करनी होती। इसमें थेाड़ी मेहनत तो अधिक करनी होती ,लेकिन काम का मजा अााता। उन दिनों लोकल का एक पेज ही होता। आज आठ पेज का और जनवार्ता छह पेज का अखबार था। वह लोकल को डेढ़ पेज देता। इस तरह कभी कभी पूरा आठ कालम खुद ही लिखना पड़ता। वंशीधर राजू सांध्यकालीन अखबारों से कुुछ अपराध समाचारों की नकल करने में ही मदद कर पाते।
हरिवंश जी ने मुझे रिपोर्टिंग के कई गुर बताए। खबर में क्या- क्या पता लगाना चाहिए, इंट्रो में क्या और कैसे लिखा जाना चाहिए। इसकेे पहले मैं जनरल डेेस्क पर था, जहां टेलीप्रिंटर से अंग्रेजी में आई खबरोंं को हिंदी में लिखा जाता। बर्मा जी इसमें निष्णात थे। वह लीडर,आज,सन्मार्ग आदि कई अखबारों मे काम कर चुके थे। यहां भी कईं साल से काम कर रहे थे। उन्होंने अनुवाद करनेे के तरीके,वाक्य विन्यास के नियम आदि बताने के साथ ही यह भी बताया कि अंग्रेजी कापी से क्या लिया जाए और क्या छोड़ा जाए। वह कोई भी खबर लिखने के पहले दो एक बार उसे पढ़ते और पहले उसकी हेेडिंंग्ा लिख लेते और फिर खबर लिखते। खबर लिखते समय कोई न कोई तथ्य वह नीचे से ऊपर ले आते और प्रााय: हेडिंग उसी पर होती। इससे उनकी खबर दूसरे अखबारों में छपी खबर से अलग हो जाती। अमूमन दूसरे अखबार के उप संपादक ज्यों की त्यों खबर लिख देते । अपनी खबर को दूसरे अलग बनाने का यह उनका अपना तरीका था।जो भी पत्रकार अपनी खबर को दूसरे से अलग बनाने की कला जानता है,उसकी खबरें भीड़ में अलग दिखती हैं।खैर--।
रिपोर्टिंग में समय अधिक लगता। दोपहर आते समय अस्पताल की खबरें देखना, आफिस आकर उन्हें लिखना,थानों से अपडेट लेना,प्रेस कांफ्रेंस सहित अन्य आयोजनों में जाना,आफिस में आई विज्ञप्तियों की छंटाई, जो संपादन लायक होंती,उन्हें संपादित कर प्रेस में कंपोज होने के लिए भेजना, जो ऐसी न होतीं उन्हें रिराइट करना आदि काम करना पडता। रात में फोन से थानों से रिपोर्ट लेना और अंतिम काम डीएम एसएसपी से बात कर किसी राजकीय आदेश आदि की जानकारी लेना आदि होता था। सांस लेने की फुुर्सत नहीं मिलती। लेकिन अपनी टीम में इतना स्नेह था कि काम का पता ही नहीं चलता।
थाने से फोन पर खबर लेने और मौके पर जाने से खबर में क्या अंतर आ जाता है,इसकी सीख मुझे एक घटना से मिली। जाड़े के दिन थे। हम लोग अपनी टेबल आफिस की छत पर निकाल लेतेअौर जबतक सूरज रहता, वहीं काम करते। एक दिन मैंअस्पताल से अाकर मेज छत पर निकलवा कर खबरें बनाने के बाद विज्ञप्तियों की छंटाई कर रहा था कि प्रधान संंपादक श्री ईश्वरचंद्र सिनहा जी मेरे पास आए और कहा --पता हैै चौक में केनारा बैंक में डकैती पड़ गई है। एक व्यापारी को गोली मार कर चार लाख रुपये लूूट लिए गए हैं। -- यह जानकारी मेरे एक सूत्र ने दे दी थी। मैने सोचा इतनी बड़ी खबर है तो पुुलिस तो सब बता ही देगी, इसलिए मैंं अपना रुटीन काम निपटा रहा था। मैनेे कहा- जी मुझे भी सूूचना मिली है। इतना सुनते ही वह नाराज हो गए।बोले तुम पत्रकार नहीं हो , जो ऐसी घटना की जानकारी होने पर मौके पर न जाए, वह कैसा पत्रकार। मैने कहा-विज्ञप्तियां बना रहा था, सोचा,इन्हें खतम कर लूं तो जाऊ्ंंगा। उन्होंनेे कहा--तुम मौके पर जाओं , विज्ञप्तियां मैंं बना देता हूुं। हां, वहां पहले भीड़ में खड़े होकर लोगोंं की बात सुनना, उससे घटना के कई विवरण ऐसे मिलेंगे जो पुुलिस के पास नहीं होंगे। उन्हें अपनी खबर मेंं डालोगे तो तुम्हारी खबर सबसे अलग बनेगी। मैं घटनास्थल पर पहुंचा और लोगों की बातें सुनने के बाद बैंक में गया। पुलिस पहुुंच चुकी थी। बैंक पहली मंजिल पर था और उसमें जाने के लिए एक पतली सीढ़ी थी। व्यापारी बैंक से पैसा निकालकर नीचे उतर रहा था और उसी समय बाहर खड़े बदमाशों ने उसे गोली मार कर पैसे का थैैला लूट लिया और सामने की गली से होते हुुए पैदल ही अंदर दालमंडी की ओर भाग गए। दिन भर घटना की गहमा गहमी रही। उन दिनों चार लाख रुपये बहत बड़ी रकम होती थी। शाम को एसएसपी में चौक थाने में प्रेस कांफ्रेंस की और तब तक कुुछ संदिग्ध लोग पकडे जा चुके थे।मैं पूरे दिन इसी एक ही खबर के पीछे लगा रहा। शाम को सिनहा जी ने मुझसे पूरा विवरण पूछा और खुद इंट्रो और हेडिंग लिखने के बाद कहा आगे पूूरी कहानी तुुम लिख दो। लोगों से जो सुुना हैै, उसे चर्चा के अनुसार, कहा जाता हैै आदि लिखकर पूरी बाात लिख दो। यदि किसी बात का लिंक नहीं मिल रहा है तो उसे ऐसा भी कहा जाता है कि लिखते हुुए लिखो। रात घर लौटते समय मैं कोतवाली थाने होते हुुए गया, जहां पकड़े गए लोगों से पूूछताछ हो रही थी। वहां के थानेदार मेरे परिचित हो गए थे उन्होंने घटना के बारे में कुछ नई जानकारी दी ।जो दूसरे दिन खबर लिखने में काम आई। निश्चित ही दूसरे दिन मेरी खबर किसी से कमजोर नहीं थी,जबकि मैं नया रिपोर्टर था और आज में मंगल जायसवाल जी और राजेंद्र गुप्त जी जैसे अनुभवी और पुुुराने पत्रकार थे जिन्हो्नेे यह खबर कवर किए थे।
सिनहाजी बनारसके बहुत सम्मानित पत्रकार थे।वह कभी आजके मुख्य संवाददाताा हुआ करते थे। उनकी कई रिपोर्ट बहुत चर्चित हुई थी। मुुझेे बताया गया था कि एक बार मुुगलसराय में हुुई एक रेल दुर्घटना की जांच रिपोर्ट उनकी खबर के आधार पर लगाई गई थी। बताया गया था कि एक पैसेंजर ट्रेेन के कई लोग मुगलसराय आउटर पर रहस्यमय तरीके से मर गए और बड़ी संख्या में लोग घायल हुुए थे।( सही संख्या मुझे याद नहीं आ रही है।) ये लोग एक खास जगह पर ट्रेन से घायल हुए थे। आसपास दुर्घटना का कोई काारण नहीं दिख रहा था। सिन्हा जी ने खबर लिखी कि जहां दुघर्टना हुुई थी उससे जुुड़ी दूसरी लाइन पर एक मालगाड़ी खड़ी थी जिससे सटकर पैसेेजर ट्रेन निकली और जो लोग डब्बे के गेट से बाहर लटके या झुुके हुए चल रहे थे, वे इसी मालगाड़ी से टकराए। दुर्घटना के बाद मालगाड़ी के चालक ने उसे कुछ फुुट अागे कर दिया जिससे लोग यह कारण समझ नहीं पाए। सिन्हा जी ने लिखा कि दुुर्घटना का कोई दूसरा कारण हो ही नहीं सकता। जब जांच दल ने मालगाड़ी के ड्राइवर से कड़ाई सेे पूूछताछ की तो उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली। एक बार मैं अकेला रिपोर्टिंग में था और लोकल की कोई लीड नहीं मिल पा रही थी। वह मेरे पास आए और पूछे की आज की मुख्य खबर क्या है।मैने कहा कि कोई अच्छी खबर नहीं हैै जिसे लोकल की लीड बनाया जा सके। वह वहां से चले गए अौर थोड़ी देर में एक खबर के साथ लौटे जो उस दिन विश्वेश्वरगंज मंडी में अनाज के दामों पर थी। बोले हर रिपोर्टर यदि आंख-कान खुला रखे तो उसे ऐसी खबरें दिख जाएंगी। उसे ऐसी खबरें अपने रिजर्व स्टाक में हमेशा रखनी चाहिए। मैं कल राशन लेनेे मंडी गया था। वहां गेहूं चावल आदि के दााम पूछे और उसी पर यह खबर हैै।जाहिर है अााज के पास वैसी कोई खबर दूसरे दिन नहीं थी। (क्रमश:)
हरिवंश जी ने मुझे रिपोर्टिंग के कई गुर बताए। खबर में क्या- क्या पता लगाना चाहिए, इंट्रो में क्या और कैसे लिखा जाना चाहिए। इसकेे पहले मैं जनरल डेेस्क पर था, जहां टेलीप्रिंटर से अंग्रेजी में आई खबरोंं को हिंदी में लिखा जाता। बर्मा जी इसमें निष्णात थे। वह लीडर,आज,सन्मार्ग आदि कई अखबारों मे काम कर चुके थे। यहां भी कईं साल से काम कर रहे थे। उन्होंने अनुवाद करनेे के तरीके,वाक्य विन्यास के नियम आदि बताने के साथ ही यह भी बताया कि अंग्रेजी कापी से क्या लिया जाए और क्या छोड़ा जाए। वह कोई भी खबर लिखने के पहले दो एक बार उसे पढ़ते और पहले उसकी हेेडिंंग्ा लिख लेते और फिर खबर लिखते। खबर लिखते समय कोई न कोई तथ्य वह नीचे से ऊपर ले आते और प्रााय: हेडिंग उसी पर होती। इससे उनकी खबर दूसरे अखबारों में छपी खबर से अलग हो जाती। अमूमन दूसरे अखबार के उप संपादक ज्यों की त्यों खबर लिख देते । अपनी खबर को दूसरे अलग बनाने का यह उनका अपना तरीका था।जो भी पत्रकार अपनी खबर को दूसरे से अलग बनाने की कला जानता है,उसकी खबरें भीड़ में अलग दिखती हैं।खैर--।
रिपोर्टिंग में समय अधिक लगता। दोपहर आते समय अस्पताल की खबरें देखना, आफिस आकर उन्हें लिखना,थानों से अपडेट लेना,प्रेस कांफ्रेंस सहित अन्य आयोजनों में जाना,आफिस में आई विज्ञप्तियों की छंटाई, जो संपादन लायक होंती,उन्हें संपादित कर प्रेस में कंपोज होने के लिए भेजना, जो ऐसी न होतीं उन्हें रिराइट करना आदि काम करना पडता। रात में फोन से थानों से रिपोर्ट लेना और अंतिम काम डीएम एसएसपी से बात कर किसी राजकीय आदेश आदि की जानकारी लेना आदि होता था। सांस लेने की फुुर्सत नहीं मिलती। लेकिन अपनी टीम में इतना स्नेह था कि काम का पता ही नहीं चलता।
थाने से फोन पर खबर लेने और मौके पर जाने से खबर में क्या अंतर आ जाता है,इसकी सीख मुझे एक घटना से मिली। जाड़े के दिन थे। हम लोग अपनी टेबल आफिस की छत पर निकाल लेतेअौर जबतक सूरज रहता, वहीं काम करते। एक दिन मैंअस्पताल से अाकर मेज छत पर निकलवा कर खबरें बनाने के बाद विज्ञप्तियों की छंटाई कर रहा था कि प्रधान संंपादक श्री ईश्वरचंद्र सिनहा जी मेरे पास आए और कहा --पता हैै चौक में केनारा बैंक में डकैती पड़ गई है। एक व्यापारी को गोली मार कर चार लाख रुपये लूूट लिए गए हैं। -- यह जानकारी मेरे एक सूत्र ने दे दी थी। मैने सोचा इतनी बड़ी खबर है तो पुुलिस तो सब बता ही देगी, इसलिए मैंं अपना रुटीन काम निपटा रहा था। मैनेे कहा- जी मुझे भी सूूचना मिली है। इतना सुनते ही वह नाराज हो गए।बोले तुम पत्रकार नहीं हो , जो ऐसी घटना की जानकारी होने पर मौके पर न जाए, वह कैसा पत्रकार। मैने कहा-विज्ञप्तियां बना रहा था, सोचा,इन्हें खतम कर लूं तो जाऊ्ंंगा। उन्होंनेे कहा--तुम मौके पर जाओं , विज्ञप्तियां मैंं बना देता हूुं। हां, वहां पहले भीड़ में खड़े होकर लोगोंं की बात सुनना, उससे घटना के कई विवरण ऐसे मिलेंगे जो पुुलिस के पास नहीं होंगे। उन्हें अपनी खबर मेंं डालोगे तो तुम्हारी खबर सबसे अलग बनेगी। मैं घटनास्थल पर पहुंचा और लोगों की बातें सुनने के बाद बैंक में गया। पुलिस पहुुंच चुकी थी। बैंक पहली मंजिल पर था और उसमें जाने के लिए एक पतली सीढ़ी थी। व्यापारी बैंक से पैसा निकालकर नीचे उतर रहा था और उसी समय बाहर खड़े बदमाशों ने उसे गोली मार कर पैसे का थैैला लूट लिया और सामने की गली से होते हुुए पैदल ही अंदर दालमंडी की ओर भाग गए। दिन भर घटना की गहमा गहमी रही। उन दिनों चार लाख रुपये बहत बड़ी रकम होती थी। शाम को एसएसपी में चौक थाने में प्रेस कांफ्रेंस की और तब तक कुुछ संदिग्ध लोग पकडे जा चुके थे।मैं पूरे दिन इसी एक ही खबर के पीछे लगा रहा। शाम को सिनहा जी ने मुझसे पूरा विवरण पूछा और खुद इंट्रो और हेडिंग लिखने के बाद कहा आगे पूूरी कहानी तुुम लिख दो। लोगों से जो सुुना हैै, उसे चर्चा के अनुसार, कहा जाता हैै आदि लिखकर पूरी बाात लिख दो। यदि किसी बात का लिंक नहीं मिल रहा है तो उसे ऐसा भी कहा जाता है कि लिखते हुुए लिखो। रात घर लौटते समय मैं कोतवाली थाने होते हुुए गया, जहां पकड़े गए लोगों से पूूछताछ हो रही थी। वहां के थानेदार मेरे परिचित हो गए थे उन्होंने घटना के बारे में कुछ नई जानकारी दी ।जो दूसरे दिन खबर लिखने में काम आई। निश्चित ही दूसरे दिन मेरी खबर किसी से कमजोर नहीं थी,जबकि मैं नया रिपोर्टर था और आज में मंगल जायसवाल जी और राजेंद्र गुप्त जी जैसे अनुभवी और पुुुराने पत्रकार थे जिन्हो्नेे यह खबर कवर किए थे।
सिनहाजी बनारसके बहुत सम्मानित पत्रकार थे।वह कभी आजके मुख्य संवाददाताा हुआ करते थे। उनकी कई रिपोर्ट बहुत चर्चित हुई थी। मुुझेे बताया गया था कि एक बार मुुगलसराय में हुुई एक रेल दुर्घटना की जांच रिपोर्ट उनकी खबर के आधार पर लगाई गई थी। बताया गया था कि एक पैसेंजर ट्रेेन के कई लोग मुगलसराय आउटर पर रहस्यमय तरीके से मर गए और बड़ी संख्या में लोग घायल हुुए थे।( सही संख्या मुझे याद नहीं आ रही है।) ये लोग एक खास जगह पर ट्रेन से घायल हुए थे। आसपास दुर्घटना का कोई काारण नहीं दिख रहा था। सिन्हा जी ने खबर लिखी कि जहां दुघर्टना हुुई थी उससे जुुड़ी दूसरी लाइन पर एक मालगाड़ी खड़ी थी जिससे सटकर पैसेेजर ट्रेन निकली और जो लोग डब्बे के गेट से बाहर लटके या झुुके हुए चल रहे थे, वे इसी मालगाड़ी से टकराए। दुर्घटना के बाद मालगाड़ी के चालक ने उसे कुछ फुुट अागे कर दिया जिससे लोग यह कारण समझ नहीं पाए। सिन्हा जी ने लिखा कि दुुर्घटना का कोई दूसरा कारण हो ही नहीं सकता। जब जांच दल ने मालगाड़ी के ड्राइवर से कड़ाई सेे पूूछताछ की तो उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली। एक बार मैं अकेला रिपोर्टिंग में था और लोकल की कोई लीड नहीं मिल पा रही थी। वह मेरे पास आए और पूछे की आज की मुख्य खबर क्या है।मैने कहा कि कोई अच्छी खबर नहीं हैै जिसे लोकल की लीड बनाया जा सके। वह वहां से चले गए अौर थोड़ी देर में एक खबर के साथ लौटे जो उस दिन विश्वेश्वरगंज मंडी में अनाज के दामों पर थी। बोले हर रिपोर्टर यदि आंख-कान खुला रखे तो उसे ऐसी खबरें दिख जाएंगी। उसे ऐसी खबरें अपने रिजर्व स्टाक में हमेशा रखनी चाहिए। मैं कल राशन लेनेे मंडी गया था। वहां गेहूं चावल आदि के दााम पूछे और उसी पर यह खबर हैै।जाहिर है अााज के पास वैसी कोई खबर दूसरे दिन नहीं थी। (क्रमश:)
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